Mahabharat Katha news: महाभारत में दुर्योधन ने अर्जुन को ऐसा क्या वरदान दिया, जो युद्ध हारने का कारण बना.
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महाभारत में दुर्योधन ने अर्जुन को ऐसा क्या वरदान दिया, जो युद्ध हारने का कारण बना.
Mahabharat Katha: महाभारत का यह युद्ध धर्म और अधर्म स्थापना का प्रतीक है जजब अर्जुन ने अपने कट्टर शत्रु दुर्योधन की जान बचाई और बदले में वरदान प्राप्त किया, तो यह कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों की जीत का एक महत्वपूर्ण आधार बन गया।यह युद्ध केवल दो परिवारों का द्वंद्व नहीं था बल्कि धर्म और अधर्म का महासंग्राम(great battle) था. कौरवों की विशाल ग्यारह अक्षौहिणी सेना के समक्ष पांडवों(Pandavas) की सात अक्षौहिणी सेना संख्या में कम थी, फिर भी पांडव लगातार विजय की ओर अग्रसर थे. दुर्योधन(Duryodhana) परेशान हो गया और गुस्से में उसने अपने पितामह भीष्म पर पांडवों का पक्ष लेने का आरोप लगाया। भीष्म इस आरोप से बहुत दुःखी हुए और उन्होंने दुर्योधन को अगले दिन पांच दिव्य बाणों से पांचों पांडवों को मार डालने का वचन दिया। ये बाण उन्होंने विशेष मंत्रों से अभिमंत्रित किये थे। लेकिन इस कठिन परिस्थिति के बीच एक ऐसी घटना भी है जहां स्वयं दुर्योधन ने अर्जुन को वरदान दिया था। आइये हम उस अद्भुत घटना को याद करें।
Mahabharat का यह युद्ध धर्म और अधर्म स्थापना का प्रतीक है यह युद्ध दो परिवारों के बीच हुआ था गौरव और पांडवों के बीच यह युद्ध हो रहा था जिसमें गौरवों के 100 भाई थे और पांडव पांच भाई थे दुर्योधन हस्तिनापुर का राजा होने के कारण वह अत्यंत अहंकारी होने के कारण वह अपने समस्त राज्य के सदस्यों का मृत्यु के घाट उतरवा देता है जिस कारण वह अंत में दुर्योधन को भी भीम द्वारा मृत्यु का घाट उतार दिया जाता है
समय का चक्र और आशीर्वाद की प्रार्थना:
Mahabharata के युद्ध में समय का चक्र जब घूमता है तब बड़े-बड़े वीर और बलवान(Strong) अपने अहंकार के कारण वह धूल में मिल जाते हैं समय का चक्र घूमता है और कुरुक्षेत्र(Kurukshetra) का भीषण युद्ध शुरू हो जाता है। जब भगवान कृष्ण को भीष्म के पांच दिव्य बाणों के वचन के बारे में पता चलता है, तो वे अर्जुन को दुर्योधन के पिछले वरदान की याद दिलाते हैं। कृष्ण की सलाह पर अर्जुन उस रात दुर्योधन के शिविर में जाता है और अपना वरदान मांगता है। वे उन पांच दिव्य बाणों की मांग करते हैं। अर्जुन की बातें सुनकर दुर्योधन को आश्चर्य होता है लेकिन अपने वचन और क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए वह अनिच्छा से अर्जुन को बाण सौंप देता है।
नतीजा
उनके पितामह भीष्म एक महान योद्धा और धनुर्धर थे जिनके सामने महान सिकंदर भी झुक जाते, लेकिन भीष्म ने अपना वचन निभाते हुए ऐसा करने से मना कर दिया। वे कहते हैं कि एक बार जो वादा कर दिया जाए, उसे वापस नहीं लिया जा सकता। इस प्रकार अर्जुन द्वारा मांगा गया वरदान पांडवों के जीवन को बचाता है और कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की हार का एक महत्वपूर्ण कारण बन जाता है। यह घटना हमें सिखाती है कि धर्म और वचन का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है और कभी-कभी दुश्मन द्वारा किया गया उपकार भी जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन सकता है।